उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) की हार के बाद अखिलेश की पार्टी में
बगावत की जो हवा चली थी उसने अब आंधी का रूप लेकर सूबे की राजनीति में बड़ी हलचल पैदा कर दी है।
अखिलेश यादव के बागी चाचा शिवपाल यादव और नाराज चल रहे पार्टी के कद्दावर मुस्लिम नेता
आजम खान एक साथ आकर यूपी की राजनीति में नया गुल खिलाने के लिए हाथ मिलाते दिख रहे हैं।
शुक्रवार को सीतापुर जेल में दोनों नेताओं के बीच हुई मुलाकात ने यह काफी हद तक साफ कर दिया है
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कि सपा के दोनों दिग्गज किसी नए मोर्चे पर साथ दिख सकते हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठ खड़ा हुआ है
कि आने वाले समय में शिवपाल और आजम की जोड़ी का यूपी की सियासत पर क्या असर होने वाला है?
शिवपाल यादव ने यूं तो कई साल पहले ही सपा से अलग होकर अपनी नई पार्टी
(प्रगतिशील समाजवादी पार्टी-लोहिया) का गठन कर लिया था, लेकिन नए दल के साथ शिवपाल
प्रदेश की राजनीति में कोई बड़ा असर नहीं छोड़ पाए हैं। हालांकि, राजनीतिक जानकारों का मानना है
कि आजम और अखिलेश साथ आकर एक और एक 11 साबित हो सकते हैं।
एक तरफ शिवपाल की यादव और खासकर सपा कार्यकर्ताओं पर अच्छी पकड़ है तो दूसरी तरफ
आजम खान यूपी में मुसलमानों के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं। ऐसे में सपा के
कोर वोट बैंक समझे जाने वाले ‘मुस्लिम-यादव’ फैक्टर को आजम-शिवपाल की जोड़ी काफी हद तक डैमेज कर सकती है।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, शिवपाल और आजम के साथ आने से अखिलेश यादव को जितना नुकसान होगा,
उतना ही फायदा भाजपा को हो सकता है। अटकलें यह भी थीं कि शिवपाल भाजपा में शामिल हो सकते हैं।
लेकिन भाजपा ने उन्हें पार्टी में आने का न्योता देने से परहेज करती रही।
मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव को पहले ही पार्टी में शामिल कर चुकी भाजपा को यह आशंका है कि
शिवपाल को भी यदि शामिल किया गया तो परिवारवाद को लेकर सपा पर हमले की धार कुंद हो जाएगी।
अखिलेश पहले ही कह चुके हैं कि भाजपा उनके उस परिवारवाद को खत्म कर रही है,
जिसका वह आरोप लगाती रही है। पार्टी के एक नेता ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की
इच्छा जाहिर करते हुए कहा कि शिवपाल को पार्टी में लेने से अधिक फायदेमंद शिवपाल की ताकत बढ़ाने में है।
आजम और शिवपाल साथ मिलकर सपा को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
2024 के लोकसभा चुनाव में यह भाजपा के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है।