केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह कल मध्य प्रदेश के दौरे पर पहुंच रहे हैं।
इस दौरान शाह प्रदेश की राजधानी स्थित जंबूरी मैदान पर तेंदू पत्ता संग्राहक सम्मेलन में हिस्सा लेंगे।
माना जा रहा है कि शाह का यह दौरा मध्य प्रदेश में चुनाव से पहले
आदिवासी वोट बैंक को रिझाने की कोशिश है। गौरतलब है कि प्रदेश में साल 2023 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।
मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी पिछले काफी समय से आदिवासी वोट बैंक को लुभाने में लगी है।
टंट्या भील को लेकर मनाया गया उत्सव हो या फिर रानी कमलावती के नाम पर स्टेशन का नामकरण।
यह सारी कवायदें इसी रणनीति का हिस्सा रही हैं। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक शामिल रहे हैं। अब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी इस मिशन में कूद पड़े हैं।
इससे साबित होता है कि आदिवासी वोट बैंक मध्य प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में कितना अहम है।
अगर आंकड़ों के लिहाज से देखें तो साफ समझ आ जाएगा कि भाजपा आदिवासी वोट बैंक पर इतना जोर क्यों दे रही है।
असल में मध्य प्रदेश में आदिवासियों की आबादी पर नजर डालें तो यह दो करोड़ से ज्यादा है।
यह दो करोड़ से ज्यादा आदिवासी प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 87 सीटों पर प्रभावी भूमिका में हैं।
यानी इन सीटों पर आदिवासी वोट हार या जीत तय कर सकते हैं।
इसमें भी खास बात यह है कि इन 87 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं।
यही वजह है कि भाजपा का पूरा फोकस आदिवासी वोट बैंक पर है। बात सिर्फ यहीं तक नहीं है।
असल में मध्य प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा जिस तरह से बहुमत से दूर हुई थी,
उनमें आदिवासी बहुल इन 87 सीटों की बड़ी भूमिका थी। 2018 में हुए इन चुनावों में
भाजपा इन 87 में से सिर्फ 34 सीटों पर ही जीत हासिल करने में कामयाब रही थी।
जबकि 2013 में इन्हीं 87 सीटों में भाजपा ने 59 पर अपना परचम लहराया था।
ऐसे में अंदरखाने भाजपा को इस बात का डर है कहीं फिर से आदिवासी उनसे दूर न हो जाएं।
इसी को देखते हुए भाजपा अपने शीर्ष नेतृत्व के जरिए इस वर्ग में
यह संदेश पहुंचाने में लगी है कि उसे आदिवासियों की वाकई चिंता है।