नई दिल्ली ।
लाल किले के प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री ने यह घोषणा की थी कि उनकी सरकार लड़कियों के विवाह की कानूनी उम्र 18 वर्ष से बढ़ाने पर विचार कर रही है । इस विषय पर सरकार द्वारा एक ‘टास्क- फोर्स’ का गठन पहले ही कर दिया गया था जिसका कार्य लड़कियों के मातृत्व प्राप्त करने की उम्र, प्रसव के दौरान मृत्यु दर में आई कमी, पोषक तत्वों के स्तर में सुधार व उससे जुड़े मसलों का अध्ययन करना शामिल था । यह टास्क फोर्स मौजूदा कानूनों में बदलाव या नए कानूनों के बनाने हेतु इसकी सिफारिशों को समयबद्ध तरीके से लागू करने के उपायों पर भी सुझाव देगी । कुछ प्रमुख मुस्लिम नेत्रियां जैसे शाइस्था अंबर, अध्यक्ष, ‘अखिल भारतीय मुस्लिम महिला पर्सनल ला बोर्ड’, शहनाज सिदरत, अध्यक्षा, ’बज्म-ए-ख्वातीन’, लखनऊ, नूरजहां साफिया नियाज, सह संस्थापक , ‘भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन’ ने प्रधानमंत्री की इस घोषणा का स्वागत करते हुए कहा कि महिलाओं के विवाह की कानूनी उम्र को बढ़ाने से सभी औरतों को अधिक ताकत व कानूनी समर्थन मिलेगा जिससे वे विवाह व मातृत्व के बोझ को सहन करने से पहले शिक्षा के अवसरों को चुन सकेंगी और स्वयं को सशक्त कर सकेंगी।
भारत मे लड़कों के लिए विवाह की उम्र 21 वर्ष और लड़कियों की उम्र 18 वर्ष है । इसके परिणाम स्वरूप, वे भारतीय लड़कियां जो कम उम्र में ही विवाह कर लेती हैं, अपने पुरुष साथियों की तुलना में कुपोषण की समस्याओं से पीड़ित रहती है। वे स्वयं के बारे में सोचने से वंचित हो जाती है। भारतीय लड़कियों के विवाह की उम्र को बढ़ा देने से लड़कों व लड़कियों में समानता आ पाएगी। जहां देश में इस बात पर बहस छिड़ी हुई है कि क्या देश की लड़कियों के विवाह की उम्र बढ़ाने के लिए नए कानून की आवश्यकता है।