हाईकोर्ट ने कहा कि हमारे समाज में विवाहित बेटियों का माता-पिता द्वारा उचित ध्यान रखते हैं। त्योहार और कई मौकों पर उन्हें कैश और अन्य उपहार दिए जाते हैं। पिता की मौत से बेटी न केवल उनके स्नेह से वंचित हुई है बल्कि उसे इसका आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है।
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में स्पष्ट कर दिया कि पिता की मौत की स्थिति में मिले मुआवजे के लिए विवाहित बेटी भी बराबर की हकदार है। वह विवाहित है इसलिए उसे मुआवजे की राशि से वंचित नहीं रखा जा सकता है।
मार्च 2016 में हुए एक वाहन हादसे में ड्राइक्लीन का काम करने वाले मलागर सिंह की मौत हो गई थी। इस मामले में मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल फतेहगढ़ साहिब ने मृतक की विधवा को मुआवजे के रूप में 9 लाख 40 हजार 266 रुपये ब्याज सहित देने का आदेश दिया था. ट्रिब्यूनल ने मृतक के दोनों बालिग बेटों व विवाहित बेटी के दावे को खारिज कर दिया था। बीमा कंपनी ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए मुआवजे के आदेश को चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट ने बीमा कंपनी की फैसले के खिलाफ अपील को तो खारिज कर दिया लेकिन ट्रिब्यूनल के आदेश पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि कैसे पूरी राशि केवल मृतक की विधवा को देकर दोनों बेटों और विवाहित बेटी को वंचित रखा जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि जहां तक मृतक की विवाहित पुत्री का संबंध है, हमारे समाज में विवाहित बेटियों का माता-पिता द्वारा उचित ध्यान रखते हैं। त्योहार और कई मौकों पर उन्हें कैश और अन्य उपहार दिए जाते हैं। पिता की मौत से बेटी न केवल उनके स्नेह से वंचित हुई है बल्कि उसे इसका आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है। ऐसे में मुआवजे में हिस्सा पाने की वह भी हकदार है। हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के फैसले में संशोधन कर मुआवजे की राशि में से 55 प्रतिशत मृतक की विधवा और बाकी 15-15 प्रतिशत राशि दोनों बेटों और 15 प्रतिशत राशि विवाहित बेटी को देने का आदेश दिया है।