NEW DELHI
DEV SHEOKAND
90 के दशक में तमिलनाडु के जंगलों में पेट्रोलिंग के लिए एक पुलिस स्क्वॉड हुआ करता था। इसकी जिम्मेदारी थी लहीम शहीम गोपालकृष्ण पर। उनकी फिटनेस को देखकर लोग उन्हें रैम्बो कहकर बुलाते थे। बात 9 अप्रैल 1993 की है। तमिलनाडु के एक गांव कोलाथपुर में एक बड़े बैनर पर गोपालकृष्ण के खिलाफ भद्दी गालियां लिखी थीं। ये गालियां एक कुख्यात डाकू ने लिखी थीं। ये डाकू चंदन की तस्करी करता था। उस कुख्यात डाकू ने कहा था कि अगर दम है तो गोपालकृष्ण आकर उसे पकड़े।
ये सुनकर आग-बबूला हुए गोपालकृष्ण ने कहा कि वे उसी समय वीरप्पन को पकड़ने निकलेंगे। वे जंगल में पलार पुल पार कर रहे थे, तभी उनकी जीप खराब हो गई। उन्होंने जीप को वहीं छोड़ा और पुल पर तैनात पुलिस से दो बसें लेकर जंगल की ओर चले गए। पहली बस में गोपालकृष्ण के साथ 15 मुखबिर, 4 पुलिस जवान और 2 वन गार्ड मिलाकर कुल 21 लोग सवार थे।इस बस के पीछे आ रही दूसरी बस में 6 लोग सवार थे। इसे पुलिस इंस्पेक्टर अशोक कुमार चला रहे थे। डाकू की गैंग ने तेजी से आती बसों की आवाज सुनी। उन्हें लग रहा था, रैम्बो बस में नहीं जीप में सवार होंगे। इस दौरान उस डाकू ने बस को दूर से देखकर सीटी बजाई, उसने गोपालकृष्ण को बस की पहली सीट पर बैठे देख लिया था। जैसे ही बस एक स्थान पर पहुंची, तो गैंग के सदस्य साइमन ने बारूदी सुरंगो से जुड़ी हुई 12 बोल्ट कार बैटरी के तार जोड़ दिए। एक तेज धमाका हुआ। बस हवा में उछल गई। चारों तरफ लाशों के चिथड़े बिखर गए। कुछ देर बाद इंस्पेक्टर अशोक कुमार पहुंचे। उन्होंने 21 शव बरामद किए। इस घटना के बाद कुख्यात डाकू के नाम की चर्चा पूरे देश में होने लगी।डाकू पूरा नाम था कूज मुनिस्वामी वीरप्पन। दुनिया उसे वीरप्पन के नाम से जानती है। उसका जन्म 18 जनवरी 1952 को कर्नाटक के गांव गोपिनाथम में हुआ था। उसने 184 लोगों की हत्या की, जिसमें 97 पुलिसवाले थे। उसे पकड़ने के लिए सरकार ने 5 करोड़ का इनाम रखा था। कहते हैं कि उसने कुल 10 हजार टन चंदन की लकड़ी की तस्करी की थी, जिसकी कीमत उस समय 2 अरब रुपए थी। वीरप्पन को मारने के लिए एक टास्क फोर्स बनाई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उसे तलाशने में 100 करोड़ रुपए खर्च हुए थे।साल 2003। विजय कुमार को STF चीफ बनाया गया था। विजय कुमार ने STF चीफ बनते ही वीरप्पन को पकड़ने की रणनीति तैयार की। उन्होंने वीरप्पन की गैंग में अपने आदमी शामिल करा दिए। एक साल बाद 18 अक्टूबर 2004 को वीरप्पन अपनी आंख का इलाज कराने जा रहा था। पपीरपट्टी गांव में उसके लिए एंबुलेंस खड़ी थी। उसमें वो सवार हो गया। एंबुलेंस पुलिस की ही थी और उसे STF का आदमी चला रहा था। पुलिस बल रास्ते में पहले से मौजूद था। अचानक ड्राइवर ने एंबुलेंस रोकी और उतरकर भाग गया। वीरप्पन कुछ समझ पाता, उससे पहले ही पुलिस ने उसे घेरकर एनकाउंटर कर दिया। एनकाउंटर 20 मिनट तक चला था।